देहरादून. जब-जब भाजपा आई है कमरतोड़ महंगाई लाई है के नारे के साथ उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत इन दिनों उत्तराखंड में पदयात्रा कर भाजपा सरकार को घेरने और उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार बनाने की जी तोड़ मेहनत में लगे हुए हैं. इस बीच, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत उत्तराखंड हित के विभिन्न मुददों पर चिंतन भी कर रहे हैं.
राज्य में राजनीतिक स्थिरता के लिए पूर्व मुख्यमंत्री श्री रावत ने विधान परिषद के गठन पर चिंतन कर इस संबंध में सोशल प्लेटफार्म पर लिखा है. पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा, एक बिंदु विचारार्थ बार-बार मेरे मन में आता है कि उत्तराखंड में राजनैतिक स्थिरता कैसे रहे! राजनैतिक दलों में आंतरिक संतुलन और स्थिरता कैसे पैदा हो! जब स्थिरता नहीं होती है तो विकास नहीं होता है, केवल बातें होती हैं. मैं पिछले 21 साल के इतिहास को यदि देखता हूं तो मुझे लगता है कि उत्तराखंड के अंदर राजनैतिक अस्थिरता पहले दिन से ही हावी है. उत्तराखंड में प्रत्येक राजनैतिक दल में इतने लोग हैं कि सबको समन्वित कर चलना उनके लिये कठिन है और कांग्रेस व भाजपा जैसे पार्टियों के लिए तो यह कठिनतर होता जा रहा है.
केंद्र सरकार का यह निर्णय कि राज्य में गठित होने वाले मंत्रिमंडल की संख्या कितनी हो, उससे छोटे राज्यों के सामने और ज्यादा दिक्कत पैदा होनी है. अब उत्तराखंड जैसे राज्यों में मंत्री 12 बनाए जा सकते हैं, मगर विभाग तो सारे हैं जो बड़े राज्यों में है, सचिव भी उतने ही हैं जितने सब राज्यों में हैं. मगर एक-एक मंत्री, कई-2 विभागों को संभालते हैं, किसी में उनकी रूचि कम हो जाती है तो किसी में ज्यादा हो जाती है और छोटे विभागों पर मंत्रियों का फोकस नहीं रहता है और उससे जो छोटे विभाग हैं उनकी ग्रोथ पर विपरीत असर पड़ रहा है, जबकि प्रशासन का छोटे से छोटा विभाग भी जनकल्याण के लिए बहुत उपयोगी होता है तो मैंने कई दृष्टिकोण से सोचा और मैंने पाया कि उत्तराखंड जैसे राज्य के अंदर हमें कोई न कोई रास्ता ऐसा निकलना पड़ेगा, जिस रास्ते से राजनैतिक दल चाहे वो सत्तारूढ़ हो या विपक्ष हो उसमें राजनैतिक स्थिरता रहे और एक परिपक्व राजनैतिक धारा राज्य के अंदर विकसित हो सके और एक निश्चित सोच के आधार पर वो राजनैतिक दल आगे प्रशासनिक व्यवस्था और विकास का संचालन करें.
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने लिखा, मेरे मन में एक ख्याल और आता है, क्योंकि तत्कालिक संघर्ष से निकले हुये लोगों के साथ बातचीत कर मैंने कांग्रेस पार्टी के घोषणा पत्र में 2002 में विधान परिषद का गठन का वादा किया था, तो कालांतर में कतिपय कारणों के कारण गठित नहीं हो पाई और उसके बाद के जो अनुभव रहे हैं, वो अनुभव कई दृष्टिकोणों से राज्य के हित में नहीं रहे हैं. इसलिये मैं समझता हूँ कि फिर से इस प्रश्न पर विचार करने की आवश्यकता पड़ रही है कि विधान परिषद होनी चाहिए या नहीं होनी चाहिए! और मैं समझता हूं 21 सदस्यीय विधान परिषद उपयोगिता के दृष्टिकोण से उत्तराखंड जैसे राज्य के लिए बहुत लाभदायी हो सकती है, राजनैतिक स्थिरता पैदा करने वाला कारक बन सकती है. इससे राज्य में नेतृत्व विकास भी होगा.
उल्लेखनीय है कि अभी देश के 6 राज्यों में विधान परिषद है. इनमें आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश है. बंगाल सरकार ने भी ऐसा प्रस्ताव विधानसभा से भेजा है.