देहरादून। हिमालय दिवस के अवसर पर “हिमालय बचाओ” आन्दोलन के संयोजक पूर्व प्रदेश कांग्रेस मुखिया किशोर उपाध्याय ने कहा कि मध्य हिमालय के विकास के लिये एक जनोन्मुखी सतत समावेशी विकास की नीति की आवश्यकता है।
उपाध्याय ने कहा कि अगर समय रहते मध्य हिमालय में हो रहे नकारात्मक पर्यावर्णीय प्रभावों को न रोका गया तो भारत को ही नहीं पूरे विश्व समुदाय को उसका ख़ामियाज़ा भुगतान पड़ेगा, पूर्वी-दक्षिण एशिया के कई राष्ट्रों का अस्तित्व मिट जायेगा। वे देश की प्राणवायु, जल और अन्न सुरक्षायें ख़तरे में पड़ जायेंगी। उपाध्याय ने कहा कि 90 के दशक से वे सरकारों का ध्यान इस ओर आकृष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं।
विश्व विख्यात पर्यवाणविद् श्रद्धेय श्री सुन्दरलाल बहुगुणा जी के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर से लेकर अरुणाचल तक एक सघन हिमालय बचाओ आंदोलन भी चलाया गया था। मध्य हिमालयी राज्यों के अलावा पूरे देश और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इस क़ार्य के लिये आगे आकर सहयोग करना चाहिये।
उपाध्याय ने कहा कि “हिमालय दिवस” का विचार 2010 में दिल्ली के विट्ठल भाई पटेल सभागार में आया था, जिसे हरीश रावत सरकार ने सरकारी मान्यता देकर मूर्त रूप दिया।
गैस सिलेंडर, बिजली और पानी निशुल्क दिया जाय
आज यक्ष प्रश्न यह है कि क्या मात्र ‘एक दिन’ का निर्धारण कर हिमालय का स्वरूप बच जायेगा, उसके लिये हमें क्या करना चाहिये? वनाधिकार कांग्रेस” के बिन्दु यथा मध्य हिमालयी लोगों को अरण्यजन मानते हुये उनके पुश्तैनी वनाधिकार और हक़ हक़ूक़ बहाल किये जाँय, उनको प्रतिमाह एक गैस सिलेंडर, बिजली और पानी निशुल्क दिया जाय।
जड़ी-बूटियों पर स्थानीय समुदाय का अधिकार
जड़ी-बूटियों पर स्थानीय समुदाय का अधिकार हो, शिक्षा व स्वास्थ्य सेवायें निशुल्क हों, एक यूनिट आवास बनाने हेतु लकड़ी, बजरी व पत्थर निशुल्क दिया जाय, जंगली जानवरों द्वारा जन हानि पर 25 लाख रू. क्षतिपूर्ति व परिवार के एक सदस्य को पक्की सरकारी नौकरी दी जाय, फसल के नुक़सान पर प्रतिनाली रु 5000/- क्षतिपूर्ति दी जाय।
उपाध्याय ने कहा कि मध्य हिमालय के विकास के लिये हम कोई “माडल” भी नहीं बना पाये हैं। उपाध्याय ने कहा कि उन्होंने 1992-93 में एक विनम्र कोशिश प्रणव मुखर्जी जी के साथ मिलकर की थी, जिसमें गंगा उदगम स्थली उत्तरकाशी और टिहरी जनपदों को विकसित कर मध्य हिमालय के विकास का माडल बनाकर मध्य हिमालय में replicate किया जाना था।
उत्तरकाशी-टिहरी पूरा योजना आयोग आया था, जिसमें भारत सरकार के 15 सचिव थे और उन्होंने दोनों ज़िलों के ग्राम प्रधान से लेकर सांसदों, NGOs, Civil Society और समाज के हर वर्ग से बातचीत कर एक रिपोर्ट बनाकर योजना आयोग को दी थी और यह भी सुझाव दिया था कि योजना आयोग में मध्य हिमालय हेतु एक अलग प्रकोष्ठ गठित किया जाय, जिसका गठन भी किया गया।
श्री मुखर्जी देहरादून, टिहरी भी आये, उत्तरकाशी भी जाना था लेकिन महत्वपूर्ण घटनाक्रम के कारण उन्हें प्रधानमन्त्री हाउस से अर्जेंट सन्देश पर वापस लौटना पड़ा, उस समय योजना आयोग द्वारा एक हज़ार करोड़ रूपये का प्रावधान इस कार्य हेतु किया गया था।
उन्होंने कहा कि आज डब्बल इंजिन की सरकार है, हिमालयी पड़ोसी राष्ट्रों के साथ हमारे सम्बन्ध कैसे हैं? सभी जानते हैं। अगर नीति आयोग में उस रिपोर्ट को खंगाल कर निकाला जाय और implement किया जाय, तो हिमालय तो बच ही जायेगा, हिमालयी लोग भी बच जायेंगे, यहाँ की नदियाँ, पशु-पक्षी, flora-fauna भी बचेगा।