मुंबई. वर्तमान काल में समस्त जगत कोरोना विषाणु के कारण चिंतित एवं भयभीत है. ऐसे दौर में आशावादी कवि राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित साहित्यकार व महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी के सदस्य डा. राजेश्वर उनियाल जी ने आमजन को अपनी कोरोना शब्दयुद्ध कविता के माध्यम से आशा की किरण दिखाई है.
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कोरोना शब्दयुद्ध … – डा. राजेश्वर उनियाल
हे सूक्ष्म अतिसूक्ष्म दानव तू;महादानव भले होजाएगा,
इस जग का स्वामी है मानव, क्या तुझसे वह डर जाएगा ।1।
तू यत्र तत्र सर्वत्र है पर,भास तुझे यह कब होगा,
जिस जग में तू विचर रहा,उस जग में ही मिट जाएगा।2।
तू आदि ना तू कोई अंत यहाँ,तू भटकता सा रह जाएगा,
तेरा निदान भी है धरा यहीं,तू कब तक यूं बच पाएगा।3।
कर ना सका बरवाद कोई,तू बरवाद क्या कर पाएगा,
सबको हमने मार भगाया,इतिहास पुनः दोहराएगा।4।
कुछ अपनों से हैं दूर हुए,कुछ नयापन अवश्य लगा,
कुछ भूले बिसरे याद किए, कुछ स्वप्न साकार होता लगा।5।
आशा की किरण जगाए हुए, भोर का सूरज जब आएगा,
विश्वास मन में हैं लिए हुए, अंधियारा तब छंट जाएगा।6।
मानव आज फिर एक हुआ, जगमग जग करने लगा,
जल थल नभ चमक रहे, नवप्रभात है दिखने लगा ।7।
तू काल बना महाकाल बना, पर अंत तेरा अब आएगा,
यह मृत्युलोक है रीत यहाँ, जो आया वो एक दिन जाएगा ।8।
शब्दयुद्ध के बाण चलाकर, मानव तुझको ललकारेगा,
तू रक्तबीज सा छा रहा पर, वह अस्तित्व तेरा मिटाएगा।9।
यह सृष्टि बनाई है जिसने, अपनी लीला नई रचाएगा,
करुणा का सागर बनकर,वह रूप नया धर आएगा।10।