वरिष्ठ पत्रकार श्री शीशपाल गुसाईं जी की कमल से
दुनियाभर में प्यार की शक्ति को समर्पित वैलेंटाइन डे यानी फरवरी के दूसरे सत्ताह का प्रेमी युवक युवतियों को बेसब्री से इंतजार रहता है. पिज्जा बर्गर, चॉकलेट के इस दौर में वैलेंटाइन डे (Valentine day) सप्ताह 14 फरवरी से पहले ही शुरू हो जाता है. वैलेंटाइन डे की शुरुआत एक प्राचीन रोमन संत वैलेंटाइन के सम्मान में शुरू हुई मानी जाती है. माना जाता है कि संत वैलेंटाइन ने तीसरी शताब्दी में रोमन के राजा क्लॉडियस के आदेशों के को तोड़कर इसाई प्रेमी जोड़ों को शादी करने में मदद की थी. जिसके बाद संत वैलेंटाइन को इसके परिमाण में जिंदगी गंवानी पड़ी.
माना जाता है कि उन्हें 14 फरवरी के दिन फांसी दी गई. उनके बलिदान का सम्मान करने के लिए यह दिन मनाया जाता है. प्रेम की इस तिथि को भले वैलेंटाइन डे मनाने का दिन माना गया हो, लेकिन प्रेम के उद्भव के बिना सृष्टि की रचना की कल्पना नहीं की जा सकती और प्रेम ही सृष्टि रचना का मूल आधार है, ऐसा कहें तो गलत नहीं होगा. हां, खुलकर प्रेम की अभिव्यक्ति करने के लिए एक खास दिन वैलेंटाइन डे अब पूरी दुनिया में जोश और उत्साह के रूप में मनाया जा रहा है.
उत्तराखंड की बात करें तो प्रेम की अमर गाथा के कई किस्से लोक में प्रचलित हैं, जो हमारी लोक संस्कृति और अनेक शौर्य गाथाओं में वर्णित किये जाते रहे हैं. इन्हीं सुंदर प्रेम कथाओं में से एक उत्तराखंड में राजुला और मालूशाही की प्रेम कथा और अमर गाथा भी है, जो हमें सदियों से अनेक माध्यमों से मिलती रही है. राजुला और मालूशाही की प्रेमगाथा का जिक्र हमारे लोक जागरों में और चांचरी में भी मिलता है. यह उत्तराखंड के पहाड़ों की सबसे प्रिय अमर प्रेम कथा है.
उत्तराखंड के गढ़वाली लोक गायक पद्मश्री प्रीतम भरतवाण ने भी अपने गीतों में राजुली और मालूशाही को पिरोया है. उन्होंने अपने गीत में इसको अपनी विलक्षण प्रतिभा के तहत दर्शाया है. कुमाऊं के गायकों ने भी बहुत तथ्यात्मक ढंग से इसे अपने गीतों में पिरोया है. राजुली मालूशाही की प्रेम गाथा यहां चप्पे-चप्पे में उल्लेखित होती हैं और बातों बातों में आती हैं.
बताया जाता है कि कत्यूरों की राजधानी बैराठ (वर्तमान चौखुटिया) में थी. जनश्रुति के अनुसार बैराठ में राजा दोला शाह राज करते थे. उनकी के पुत्र पुत्र नहीं थे. उन्हें सलाह दी गई कि वह बागनाथ (वर्तमान बागेश्वर) में भगवान शिव की आराधना करें तो संतान प्राप्ति होगी. वहां दोला शाह को संतानविहीन दंपति सुनपति शौक-गांगुली मिलते हैं. दोनों तय करते हैं कि एक के यहां लड़का और दूसरे के यहां लड़की हो तो वह दोनों की शादी कर देंगे. कालांतर में शाह के यहां पुत्र और सुनपति के यहां पुत्री जन्मी. ज्योतिषी राजा दोला शाह को पुत्र की अल्प मृत्यु का योग बताते हुए उसका विवाह किसी नौरंगी कन्या से करने की सलाह देते हैं. लेकिन दोला शाह को वचन की याद आती है. वह सुनपति के यहां जाकर राजुला-मालूशाही का प्रतीकात्मक विवाह करा देते हैं.
इस बीच राजा की मृत्यु हो जाती है. दरबारी इसके लिए राजुला को कोसते हैं. अफवाह फैलाते हैं कि अगर यह बालिका राज्य में आई तो अनर्थ होगा. उधर, राजुली (Rajuli) मालूशाही (Malushahi) के ख्वाब देखते बड़ी होती है. इस बीच हूण देश के राजा विक्खीपाल राजुला की सुंदरता की चर्चा सुन सुनपति के पास विवाह प्रस्ताव भेजता है. राजुला को प्रस्ताव मंजूर नहीं होता. वह प्रतीकात्मक विवाह की अंगूठी लेकर नदी, नाले, पर्वत पार करती मुन्स्यारी, बागेश्वर होते हुए बैराठ पहुंचती है. लेकिन मालूशाही की मां को दरबारियों की बात याद आ जाती है. वह निद्रा जड़ी सुंघाकर मालूशाही को बेहोश कर देती है. राजुला के लाख जगाने पर भी मालूशाही नहीं जागता. राजुला रोते हुए वापस चली जाती है. यहां माता-पिता दबाव में हूण राजा से उसका विवाह करा देते हैं. उधर, मालूशाही जड़ी के प्रभाव से मुक्त होता है. उसे राजुला का स्वप्न आता है, जो उससे हूण राजा से बचाने की गुहार लगाती है. मालूशाही को बचपन के विवाह की बात याद आती है. वह राजुला के पास जाने का निश्चय करता है तो मां विरोध करती है. इस पर मालूशाही राज-पाट, केश त्याग संन्यासी हो जाता है. दर-दर भटकते उसकी मुलाकात बाबा गोरखनाथ से होती है. उनकी मदद से वह हूण राजा के यहां जा पहुंचता है. राजुला मालूशाही को देख अति प्रसन्न हो जाती है. ऐसी प्रेम गाथा जातियों और कष्टों और देशों की बंटवारे की बात को तोड़ती है. राजुली और मालूशाही की प्रेम गाथा उत्तराखंड में अमर है.