आज उठते ही कुछ यूँ घटित हुआ… सुबह सुबह ही पिताजी की स्मृतियों ने घेर लिया… इसका कारण ये भी हो सकता है शायद जब भी निराशा ने घेरा तो पिताजी की सीख ने आशा की एक किरण जगाई… पिताजी, जिन्होंने अपने जीवन मे कई संघर्ष कई उतार चढ़ाव देखे… संघर्षों ने ही उन्हें मजबूत चट्टान बना दिया. वही शिक्षा उन्होंने मुझे भी दी… उनका उस समय में भी ये कहना की “लड़की हो ये सोचकर अपने आप को कमजोर मत समझो तुम इस समाज की कर्णधार हो… मस्तक ऊँचा रखो और कर्तव्य पथ पर बढ़ो” मेरे जीवन के आधार हैं. स्वाभिमान से जीना मैंने अपने माता पिता से ही सीखा है…
आज जब कारोना वाइरस की वजह से विश्व भर में लाक्डाउन की स्थिति हुई तब हर इनसान अपने आपको बहुत बड़ा दानी समझ दान के फोटो खिंचवा पोस्ट कर अपनी शेखी बघार रहा है, कैसे भले हुए हैं हम की हर तरफ खौफ़ है लाखों संक्रमित व्यक्ति लाखों मौतें विश्व भर और स्वम भारत में चौंका देने वाले आँकड़े और अभी भी हम दिखावे में जी रहे हैं.
ऐसे में पिताजी की स्मृतियों से एक बात और की अगर समर्थ हो तो दूसरों की मदद ज़रूर करना… जबतक दान देने वाले ऊपर के हाथ के नीचे सहारा नहीं होगा, दूसरा हाथ नहीं होगा तो वो दान व्यर्थ होगा, इसलिए दाता और भिक्षुक एक दूसरे के पूरक हैं…. कोई बड़ा और छोटा नहीं होता.
माँ कहती है जो किसी को कुछ नहीं देना तो बेकार उपदेश भी मत दो, ना ही दूसरे को नीचा दिखाओ क्यूँकि माँगने वाला पहले ही स्वाभिमान को दरकनार कर आपकी दहलीज़ तक पहुँचा है फिर उसको कुछ देना भी नहीं और झिड़की देना मूर्खता है माँ की इस अवसर पर एक कहावत बहुत चर्चित रहती है…. “माई भिक्षा नहीं देनी मत दे
पर अपने भुँकने वाले जानवर को सम्भाल”.
सोच रही थी इतनी शिक्षा इनकी जीवन की तपस्या का ही तो निचोड़ है… पिताजी हमेशा खुद की मेहनत पर विश्वास करने की ही बात करते थे… उनके विचार मे वही मनुष्य तरक्की करता है जो अपनी मेहनत से आगे बड़ता है… जो आत्मविश्वासी है और जिसे अपने पर भरोसा है. साथ ही उनका कहना था अपने आप से प्यार करो तभी तो दूसरों को भी प्यार कर सकोगे.
आज इस भय के वातावरण में माता पिता की शिक्षाएँ मेरा संबल बड़ा रही हैं मुझे इस विपदा से जूझने का हौंसला दे रही हैं.
पिताजी की सोच थी हमेशा उनका आदर करो जो हर वक्त ऐसा काम कर रहे हैं जो देशहित मे है और अन्नदाता किसान का उपकार कभी मत भूलो… उनका कहना था तुम कितने बड़े आदमी हो जाओ… कितनी दौलत कमा लो पेट की अग्नि अन्न से ही शान्त होती है, इसलिए किसान हमारा भगवान है…. और आज उनकी इस शिक्षा को मान मै रोज उन देश सेवकों का धन्यवाद कर रही हूँ जो विपदा के समय मे भी अपने कर्तव्य निर्वाह में लगे हैं… उस अन्नदाता किसान का आभार व्यक्त कर रही हूँ, जिनके रात दिन बहाए पसीने की वजह से हम भूखे नहीं हैं… हमारे अन्न के भंडार भरे हुए हैं.
पिताजी की स्मृतियों से आँखें नम हैं आज वो मेरे पास तो नहीं पर अपनी शिक्षा की पोटली ले हमेशा मेरे साथ हैं… माँ आज मेरे बच्चों को भी शिक्षित कर रहीं है. रहरह रह कर पिताजी द्वारा गाई ये प्रार्थना आज याद आ रही है जिसने आज सुबह सुबह मस्तिष्क के तारों मे कंपन्न कर पिताजी की स्मृतियों की झड़ी लगा दी आप सबके लिए भी कुछ यूँ….
आशीर्वाद तुम्हारा चाहिये…..
ऊँचे मस्तक से नित नई पहचान देते
वो पिता ही हैं जो तिल तिल जलकर
चुपके से हमे हर ख़ुशी भरपूर देते
स्वाभिमान का पाठ पड़ा पथ की पहचान देते
डगमग रास्तों हाथ हैं थाम लेते
वो पिता ही हैं जो ऊँची उड़ान देते
कठोर बन जो चुपके से है अकेले में रो लेते
तपती दोपहरी में जो ठण्डी छाओं देते
वो पिता ही हैं जो खुश रहने का वरदान देते
ठोकर लगती कभी जब आकार थाम लेते
कमजोर हौसलों को जान देते
वो पिता ही हैं जो मेरी हर मुसीबत भाँप लेते
कहाँ चले गये अब कौन से देश तुम पापा
कुछ अपना अता पता तो बता देते
अब भी हूँ लड़खड़ाती असमंजस में
पापा कवच तुम्हारा मुझे अब चाहिये
हार गई कपटी दुनिया से साथ तुम्हारा चाहिये
कहते सभी पिता दिवस है आज
जहां भी हो उस दुनिया में तारों के पार
मुझे आज बस एक आशीर्वाद तुम्हारा चाहिये.