टिहरी. उत्तराखण्ड में टिहरी गढ़वाल के थौलधार और प्रतापनगर ब्लॉक के बीच भागीरथी घाटी पर बना डोबरा चांठी पुल लोकार्पण से पहले ही सुर्खियों में है. आएं पढ़ें पुल निर्माण के उन शिल्पकारों को, जिनके सतत प्रयास से बांध के कारण अलग थलग पड़ा एक बड़ा क्षेत्र फिर नजदीक आ रहा है. ऐसे शिल्पकार जिन्होंने इस सेतु को देश की सर्वोच्च अदालत से न केवल स्वीकृत करवाया बल्कि मॉनिटर भी करवाया. जानें विस्तार से..
उत्तराखण्ड में टिहरी गढ़वाल के थौलधार और प्रतापनगर ब्लॉक के बीच भागीरथी घाटी के डोबरा ओर चांठी गाँव के बीच निर्माणाधीन 440 मीटर स्पान के इस ऐतिहासिक पुल का निर्माण लगभग पूर्ण होने को है, अभी यह पूर्ण नहीं हुआ है, लेकिन सत्ताधारी दल अभी से अपनी पीठ ठोकने लगा है जबकि इस पुल के निर्माण में बहुत बड़ा संघर्ष प्रतापनगर ओर टिहरी के लोगों का है.
आइये बिंदु वार जाने इस पुल के सफर को
- वर्ष 2002 में यह लगने लगा था कि टिहरी डूबते ही एक विशाल झील बनेगी ओर आर-पार के लिए पुलों, फेरी बोट, रोपवे की आवश्यकताएं होंगी, इन सभी विषयों पर तत्कालीन कांग्रेस विधायक/मंत्री श्री किशोर उपाध्याय ने गंभीरता से सोचा और पूरे बाँध प्रभावित इलाकों में समस्याओ के संकलन के लिए जगह-जगह महापंचायते आयोजित की, इन महापंचायतो में लोगो ने बढ़ चढ़ कर प्रतिभाग किया, और समस्याएं एकत्र की गई. महापंचायतो से एकत्र समस्याओं को तत्कालीन मुख्यमंत्री जी को एक डॉजियर बना कर दी गई.
- टीएचडीसी और जिला प्रशासन टिहरी बाँध की अंतिम सुरँग टी-2 को बंद करने पर आमादा था और जनता समुचित पुनर्वास किये बिना इसे बंद करने के खिलाफ थी, लेकिन बाँध एजेंसियां नहीं मानी और सुरँग बन्द करने लगी, इस सुरंग के बन्द होते ही भागीरथी व भिलंगना नदियां अवरुद्ध हो जाती, यह विकट परिस्थिति थी अभी लोगों का न तो पूरा विस्थापन हुआ था और ना ही आर पार जाने के साधन बने थे. अंततः श्री किशोर उपाध्याय जी ने अपने एक मित्र और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंसोल्विस से मदद माँगी सौभाग्य से इसी फर्म में टिहरी के निवासी और ख्याति प्राप्त पत्रकार/प्रोफेसर डॉ. हर्ष डोभाल भी काम करते थे. सम्यक विचार के बाद तय हुआ कि बाँध प्रशासन को मनमानी नहीं करने देंगे और माननीय उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई, जिसमें याचिकाकर्ता (किशोर उपाध्याय, जोत सिंह बिष्ट, शान्ति प्रसाद भट्ट, महिपाल नेगी, दर्शनी रावत थे) PIL NO 683/2004 शान्ति प्रसाद भट्ट बनाम भारत संघ व अन्य मा० उच्च न्यायालय ने अंतिम सुरँग को बंद करने पर स्टे लगा दिया, चार बार स्टे के बाद ना जाने क्यू शनिवार को स्टे हटा दिया गया..? और बाँध प्रशासन ने 29 अक्टूबर 2005 को अंतिम सुरँग को बंद कर दिया, हम लोग जब सुरँग स्थल पर विरोध करने पहुंचे तो हमें गिरफ्तार कर लिया गया व देर रात में निर्जन जगह पर छोड़ा गया.
- उक्त आदेश के खिलाफ हम लोग माननीय सुप्रीम कोर्ट गए (SLP No 22895/2005 किशोर उपाध्याय बनाम भारत संघ व अन्य) और मा० सुप्रीम कोर्ट ने उक्त याचिका सुनवाई हेतु स्वीकार कर ली, इस याचिका में प्रमुख याचनाये यही थी, कि बाँध प्रशासन और सरकारे समुचित पुनर्वास करे, आर-पार जाने के लिए डोबरा चांठी पुल, चिन्यालीसौड़ पुल, घोंटी पुल, स्यांसु पुल सहित फेरी बोट, रोपवे, पहुँच मार्ग, पेयजल पम्पिंग योजनाएं, कोशियारताल, सारजुला, प्रतापनगर, राजाखेत, सुरकंडा आदि बनाये ओर वर्णित गाँव का विस्थापन करे, ग्रामीण व्यापारियों को भी प्रतिकर दे आदि आदि.
- उक्त याचिका पर देश की सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार, राज्य सरकार, टीएचडीसी के जवाव तलब किये, और उक्त कार्यो को स्वीकृत कर समय समय पर अधतन रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत करने को कहा. उक्त केश में कुल 51 अंतरिम आदेश पारित हुए, जिनसे अनेकों लाभ जनता को हुए (इसमें चिन्यालीसौड़ व घोंटी पुल बन चुके).
- इसी बीच तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष हरीश रावत, किशोर उपाध्याय, फूल सिह बिष्ट, विक्रम नेगी, पूर्णचन्द रमोला, विजयलक्ष्मी थलवाल, प्रवीन भंडारी प्रतापनगर के दौरे पर थे, तो कंगसाली में ग्रामीणों ने उक्त नेताओं का रास्ता रोक दिया, और यहीं से हरीश रावत जी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी जी से वार्ता की, यह तय हुआ कि एक शिष्ट मंडल सीएम तिवारी जी को मिलने दून आये। अगले दिन किशोर उपाध्याय और स्व० फूल सिह बिष्ट के नेतृत्व में एक बड़ा शिष्ट मंडल जिसमें विक्रम सिंह नेगी, जोत सिंह बिष्ट, शान्ति प्रसाद भट्ट, पूरनचंद रमोला, विजयलक्ष्मी थलवाल, रोशन लाल सेमवाल, मुराली लाल खण्डवाल, लक्ष्मी प्रसाद भट्ट, राकेश राणा, सब्बल सिह राणा, वीरेंद्र सिंह रावत, आनन्द रावत, उदय रावत, नरेंद्र राणा, कुलदीप पँवार, खुशी लाल आदि लोगों ने तिवारी जी से इस पुल की सैद्धांतिक स्वीकृत दिलवा दी.
- अर्थात 01 मई 2006 को 89.20 करोड़ की स्वीकृति के साथ 440 मीटर लंबा पुल स्वीकृत हो गया। किन्तु डीपीआर बनने में समय लगा, और तब तक विधान सभा चुनाव आ गये, 08 मार्च 2007 को भाजपा की सरकार बन गई और सीएम खंडूरी जी बने। 08 मार्च 2007 से 13 मार्च 2012 तक भाजपा की सरकार रही और यही वह वक्त था जब इस पुल का डिजाइन खराब कर दिया गया और धन का दुरुपयोग हुआ.
- इस बीच मामला मा० सुप्रीम कोर्ट में चल ही रहा था कि मा० सुप्रीम कोर्ट ने दिनांक 17.09.2010 को उक्तो पुलों पर केंद्र और राज्य को फटकार लगाई और निर्देश दिये। पुनः दिनांक 09.11.2010 को कोर्ट ने उक्त पुलों को शीघ्र निर्माण हेतू राज्य और केंद्र को धनराशि देने और निर्माण के आदेश जारी किए, तत्पचात याचिकाकर्ता श्री किशोर उपाध्याय और पूरी टीम का टिहरी में जोरदार स्वागत हुआ.
- किन्तु उक्त आदेश के बाद भी पुल निर्माण ने गति नहीं पकड़ी कारण था कि पुल के डिजाइन में गड़बड़ी हो चुकी थी, और 13 मार्च 2012 को विजय बहुगुणा के नेतृत्व में कांग्रेस की निर्वाचित सरकार राज्य में बन गई थी और प्रतापनगर से जीते कांग्रेस विधायक विक्रम सिंह नेगी ने इस पुल के निर्माण में हो रही देरी का सवाल विधानसभा में उठा लिया..? सरकार ने जवाब में इस पुल के डिजाइन को आईआईटी खड़गपुर से चैक करवाने का निर्णय लिया. अंततः सरकार को इस पुल को डिजाइन/निर्माण के लिए अंतरराष्ट्रीय निविदा (ग्लोबल टेण्डर) आमंत्रित करने पड़े। जो कि कोरिया की कंपनी योसिन कॉर्पोरशन ऑफ कोरिया के नाम खुला.
- इस कंपनी ने इस पुल के विंड टर्नर टेस्ट करने के बाद कार्य में प्रगति देनी शुरू की.
- 01 फरवरी 2014 को प्रदेश की कमान मुख्यमंत्री हरीश रावत जी ने संभाली और मुझे जिला निर्माण सलाहकार समिति में बतौर उपाध्यक्ष बना दिया गया, मुझे निर्देश हुआ कि मैं चांठी की तरफ से एक सड़क मार्ग जो कि पुल के आधरभूत ढांचे के निर्माण सामग्री के लिए जल्द बननी थी को प्रारम्भ करवाऊ, (चूंकि इस वक्त यहां के विधायक विक्रम सिंह नेगी जी गमी में थे, आपके पूज्य पिताजी का देहांत हुआ था) वे आ नहीं सकते थे, मुझ पर दोहरी जिम्मेदारी थी, पार्टी का जिलाध्यक्ष भी था, इसलिए मैंने सभी साथियों के साथ उक्त मार्ग का कार्य दिनांक 14 अगस्त 2015 को चांठी की तरफ से पुल के स्पान तक की सड़क की कटिंग को इंजीनयर असवाल जी, एस. के रॉय और साथियों के साथ हरीझंडी दिखाई.
पुल के लिए प्रयास करने वाले टीम के सदस्यों ने कहा कि हमें संतोष है कि चिन्यालीसौड पुल, घोंटी पुल बन चुके हैं और अब यह ऐतिहासिक पुल जनहित में निर्मित हो रहा है, इसमें सभी की भागीदारी है, जो लोग आज सत्ता में है, उनकी अधिक जिम्मेदारी है, लेकिन जिन्होंने इसे मुकाम तक पहुंचाया है, उन्हें भी कम ना आंका जाएं उन अधिकारियों, कर्मचारीयों, इंजीनियरों, ठेकेदारों, मजदूरों की मेहनत को नमन है.
साभार:-
एडवोकेट शान्ति प्रसाद भट्ट
अध्यक्ष,
बार एसोसिएशन टिहरी गढ़वाल