– राकेश पुण्डीर
जिस प्रकार जौनसार भावर में ठोडानृत्य, गढवाल में सरौंनृत्य वीरों अथवा भडत्व के प्रतीक हैं उसी प्रकार कुमाउ मंडल में छलिया नृत्य वीरो भडों के प्रतीकात्मक ओजपूर्ण नृत्य प्रसिद्ध हैं।
अक्सर अवसर विशेष, जैसे देव पूजन, मेले, कौतिक, स्वागत समारोह आदि में छोल्यानृत्य (छलिया नृत्य) की विशेष रूप से प्रस्तुति की जीती है, वह अपने आप में एक गौरवशाली परंपरा है, परंतु अधिकांश लोग इसे सिर्फ नृत्य के रूप मे लेकर इसका लुफ्त उठाते हैं, लेकिन इस नृत्य का एतिहासिक महत्व है। जिस प्रकार गढवाल मंडल में “सरौं नृत्य” की एक बडी गौरवशाली एतिहासिक पृष्ठभूमि रही है उसी तरह छलियानृत्य का भी वैभवशाली इतिहास रहा है।
जनश्रुतिनुसार कहा जाता है कि चंपावत के राजा मेघबर्मन को तराई के युद्ध में मुगल सेना से हार का सामना करना पडा, मेघबर्मन को बंदी बना मुगल सेना के कैंप मे बांधकर रखा गया। मलेच्छ मुगलों ने चंपावत के राजदरवार में खबर भिजवाई कि राजघराने की सभी महिलाओं को युध्दस्थल कैंप में पेश किया जाय और फिर अपने राजा को छुडा लें।
चंपावत के वरिष्ठ मंत्री हीरामन जोशी को धोखेबाज मलेच्छों पर बिल्कुल भरोसा नहीं था, तीब्र बुद्धिबल के स्वामी, मंत्री हीरामन ने सोचा, क्यूं न नारियों के भेष में पुरुषों को भेजा जाय!
उन्होने सोच विचारकर आपातकालीन सभा बुलाई …इस सभा में चंपावत के सभी वीर सहासी किशोरों को आव्हान किया गया था, हीरामन के जोशीले संवाद से १०० से अधिक किशोर रणभूमि में जाने तत्पर हुए। उन्हें नारी भेष में नौपटीया रंगले पिंगले घाघरों चोली से सजा दिया गया टिकी विंदी लगा दी गयी, बालों के लिये भिमल के रेसों को काले रंग मे रंगाकर सिर पर केशमंडित कर दिया गया और मुख्य बात उनके अस्त्र शस्त्रों को चौडे घाघरों के अंदर इस तरह शरीर पर बांध दिया गया कि युद्ध के समय तत्पर निकाला जा सके।
अगले दिवस ढोल तोसों सहित नारी रूप मे सभी जवानों ने मार्च किया और मुगल सेनापति को खबर भिजवाई कि चंपावत की नारियां मुगल सेनापति के पास रात्रि के पहले पहर तक पहूंच जांएगी (हीरमन जोशी द्वारा रात्रि का प्रथम पहर समझबूझ कर रखा गया था) हीरामन जोशी एवम वादक रविदास और उसका पुत्र पुरुष भेष में ही ढोल और तासा वादक रूप में झुंड की अगवानी कर रहे थे।
मलेच्छों के सभी सैनिक इस रात्र प्रथम पहर में भोजन आदि कर निहत्थे आराम फरमा रहे थे, झुंड को मुगल सेनापति के कैंप के सम्मुख खडा कर दिया गया। मशालों की लाल रोशनी में नारी रूप में किशोरों के सुंदर गोरे चिट्टे चेहरे दमक रहे थे, मुगल सैनिक मदिरापान कर खुशी से मचल रहे थे, वे मदिरापान में मदमस्त हुए जा रहे थे, सभी युवा किशोर, मंत्री हीरामन का संकेत मिलने की तैयारी में थे, जैसे ही मंत्री को अपने राजा के कैद का स्थान विदित हुआ उन्होने जोरदार ढोलताशा नाद किया, नारी रूप में सजे किशेारों को संकेत मिल गया और उन्होने पलक झपकते ही बिजली की गति से मलेच्छों पर आक्रमण कर दिया। वे नशे मे धुत मुगल सेना को गाजर मूली की भांति काटने लगे, मोगल सेनापति बुरी तरह घायल होकर अंधेरे का लाभ उठाकर कहीं भाग गया, किशोरों ने अपने राजा को छुडाया और तेज गति से सभी चंपावत की ओर चल दिए।
दूसरे दिवस इस विजय का सेहरा राजा ने उन नारी रूप मे गये किशोरों को पहना कर सम्मानित किया और राज्य मे जोरदार उत्सव मनाया गया।
कालांतर में कुमाउ गढ में विशेष तीज त्योहारों पर यह नृत्य किया जाने लगा जो शनै शनै कुमाऊ में एक परंपरा बन गयी, जिसका नाम छलनृत्य अथवा “छलिया” नृत्य रखा गया। जिसे आजकल लोग छोल्यानृत्य कहते हैं समयानंतर यह विरासत यह धरोहर सदियों से आज उत्तराखंड की एक मुख्य सांस्कृतिक परंपरा बन चुकी है ।