जब-जब जनता के अधिकारों को कुचलने के कृत्य चुने गए जन प्रतिनिधियों द्वारा बढ़ जाते हैं और उनके अत्याचारों की सारी सीमाएं खत्म हो जाती हैं, तो ऐसे में लोकतंत्र को बचाने की उम्मीद समाज के कवि, गीतकार, साहित्यकार और पत्रकारों से जगती है.
यद्यपि समाज को जागृत करने वाले इस विधा के कतिपय लोग बहती गंगा में हाथ धोने के लिए अपनी मूल विधा का समर्पण कर देते हैं और राजनीतिकों के कृत्यों के भागीदार बन जाते हैं. लेकिन कई लोग आज भी ऐसे हैं, जो अपनी रचनाधर्मिता से समाज को जागृत करने का बीड़ा उठाए हुए हैं. यहां हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड की और जब उत्तराखंडियों को जागृत करने की बात हो तो राज्य निर्माण के लिए राज्य के कवि, पत्रकारों, गीतकारों ने अपनी रचनात्मक अभिव्यक्ति से राज्यवासियों के अंदर जोश की अपार ऊर्जा का निर्माण कर राज्य आंदोलन की बड़ी पृष्ठभूमि तैयार की व इसे सार्थक परिणाम तक पहुंचाया.
आज उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद पहली बार है जब राज्य में भर्तियों में हुई धांधलियों के मामले समाचार पत्रों, संवाद फलकों पर समाज के बीच तैर रहे हैं, जिसके बाद राज्य सरकार भी आरोपियों की धरपकड़ के लिए निरंतर जुटी हुई है. कई सलाखों के पीछे जा चुके हैं. लेकिन इस सबके बीच, कानून बनाने वाली विधायिका के अंदर कथित तौर पर बैकडोर से हुई भर्तियों और उत्तराखंड अधिनस्थ सेवा चयन आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाओं के पेपर लीक जैसे घटनाक्रमों से उत्तराखंड के आम लोगों का विश्वास अपने जनसेवक चुनकर भेजे गए “राजाओं” राजनेताओं से डगमगा गया है.
ऐसे में उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध गीतकार श्री नरेंद्र सिंह नेगी (Shri Narendra Singh Negi) जी ने अपनी विधा की बड़ी सामाजिक जिम्मेदारी निभाकर लोकतंत्र में राजा समझ बैठे जनप्रतिनिधियों पर जबरदस्त कटाक्ष करते हुए अपना नया जनगीत “लोकतंत्र मा” प्रस्तुत किया है. श्री नरेंद्र नेगी जी का यह जन गीत आम उत्तराखंडियों की उस पीड़ा की अभिव्यक्ति माना जा रहा है, जो हाल में उत्तराखंड में भर्ती घोटालों से त्रस्त होकर सदमे की स्थिति में है.
अपने ही जनसेवकों से ठगे जाने से निराश हो चुकी जनता को यह गीत जहां जनता को फिर से जगने की उम्मीद की किरण देता है वहीं ऐसे नेताओं को भी आगाह करता है. जनसेवक के रूप चुनकर भेजे गए नेताओं के द्वारा खुद को राजा मानकर बैठे लोकतंत्र में जनता की पीड़ा बयां करता यह जनगीत NARENDRA SINGH NEGI -OFFICIAL चैनल पर 3 सितंबर को जारी किया गया है.
इस गीत का संगीत संयोजन रणजीत सिंह ने किया है. श्री नरेंद्र सिंह नेगी (Shri Narendra Singh Negi) जी ने अपने इस गीत में राज्य की पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा है कि जिस राज्य को बने अभी ज्यादा दिन भी नहीं हुए, फल पका नहीं और तथाकथित ”राजा” कच्चे फल ही खाने लगे, यानी जो सपने लोगों ने राज्य निर्माण के देखे थे वह अभी पूरे भी नहीं हुए कि नेताओं ने राजा समझकर उसे पहले ही चट कर लिया है. अपने जनगीत के जरिए हाल के भर्ती घोटालों पर सटीक चोट करते हुए नरेंद्र सिंह नेगी ने गाया है कि राज्य की नौकरियों के लिए भी सिर्फ इन राजा बन बैठे जनप्रतिनिधियों के ही संगे संबंधी ही सेवाओं के काबिल हैं और हम (राज्यवासी) काम न काज के हो गए, अपने ही राज्य के खातिर! नरेंद्र सिंह नेगी जी ने ऐसे नेताओं को इस गीत के माध्यम से आगाह किया है कि अब नहीं चलने देंगे इस धांधलबाजी को, क्योंकि थोड़ा अल्स्ये गै था (मुरझा गए थे) फिर इन घटनाक्रमों से ताजा हो गए हैं.