(श्री भीमसिंह रावत व श्री बलदेव नेगी के सौजन्य से प्रकाशित)
अखोड़ी. उत्तराखंड के गांधी स्व. इंद्रमणि बडोनी जी का गांव अखोड़ी किसी परिचय का मोहताज नहीं है. यह गांव राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक और खेल प्रतिभाओं के उदय के लिए भी पहचाना जाता है. इसी गांव से एक खेल सितारा सूरज नेगी भी जन्मा. कम उम्र से ही क्रिकेट के प्रति गजब की दीवानगी से सूरज ने क्षेत्र में अपनी खेल प्रतिभा से ऐसी अमिट छाप छोड़ी कि जब क्रिकेट का नाम आए तो सूरज की सूरत लोगों के आंखों में आ जाती है. सूरज का क्रिकेट में बुलंदियों का सफर शुरू ही हुआ था कि कुदरत ने ऐसा खेल खेला कि अखोड़ी का सूरज समय से पहले ही अस्त हो चला. जब लोग यहां के क्रिकेट सितारे विनोद नैथानी के गम को भूले भी नहीं थे कि सूरज के असमय चले जाने से क्षेत्रीय क्रिकेट की दुनिया में अंधेरा पसर गया. धीरे धीरे क्षेत्र के युवा इस सदमे से उभरे और अब हर साल अपने इन्हीं सितारों के नाम पर अखोड़ी में बड़े क्रिकेट टूर्नामेंट आयोजित कर क्षेत्र के लोग विनोद नैथानी और सूरज नेगी को श्रदधांजलि देते हैं.
06 जुलाई को हुआ था सूरज नेगी का जन्म
सूरज का जन्म अखोड़ी गांव में 06 जुलाई 1975 में हुआ था. मध्यमवर्ग परिवार में जन्में सूरज नेगी ने अपनी शिक्षा अखोड़ी के गोदाधार स्कूल से की. अखोड़ी के झिमर्शोड़ से क्रिकेट खेलना शुरू करने वाले सूरज नेगी क्रिकेट का एक बेहतरीन हरफन मौला खिलाड़ी के रूप में विख्यात हुआ. कम समय में ही बेहतरीन खेल प्रर्दशन के कारण सूरज नेगी ने उत्तराखंड से लेकर दिल्ली के मैदानों तक आलराउंडर खिलाड़ी के रूप में जर्बदस्त लोकप्रियता हासिल की. बल्लेबाजी, गेंदबाजी और छेत्ररक्षण में समान रूप से महारथ रखने वाले स्व. नेगी ने कम समय में ही क्रिकेटप्रेमियों में अपनी अमिट छाप छोड़ी.
सूरज नेगी क्रिकेट के मैदान के अलावा उत्तराखंड की संस्कृति को लेकर भी बेहद संजीदा थे और बचपन से ही सांस्कृतिक रंगमंचों में बढ़ चढ़कर भाग लेते थे. अखोड़ी गांव में होने वाली रामलीला में सूरज नेगी ने राम, लक्ष्मण और सीता के पात्र की भी कई बार भूमिका निभाई. सूरज नेगी जब राम की भूमिका का किरदार निभाते थे, तब सीता के किरदार में जमन नेगी और रावण के किरदार में बुदि मेहरा रामलीला के मंचन में लोगों का दिल जीत लेते थे. सूरज नेगी बालीबॉल, बैटमिंटन, शतरंज के भी बेहतरीन खिलाड़ी थे.
सूरज की वे अनोखी यादें जो याद रखेंगे खिलाड़ी
सूरज ने जब अखोड़ी मैदान में सन 1987 में क्रिकेट खेलना शुरू किया, तब अंडर 15, बाल टीम से सूरज खेला करते थे, कई साल तक बाल टीम के कप्तान रहे सूरज ने अखोड़ी टीम को विजेता बनाया. अपनी कम उम्र में ही क्रिकेट के प्रति बहन लगन और जूनून से वे खेलते थे, सबको इनके हुनर पर यकीन था कि ये बालक एक दिन जरूर अपने गांव का नाम रोशन करेगा. उम्र A टीम में शामिल होने की हुई तो सूरज का चयन अखोड़ी की A टीम सीनियर में हुआ. अपने पहले ही मैच में बेहतरीन खेल से सभी से सभी को अपना मुरीद बना दिया. इनके साथ अधिकतर बल्लेबाजी क्रम में श्री हरीश बडोनी मैदान में खेलते थे. दायें हाथ के बल्लेबाज सूरज जब भी बैटिंग करते थे, तो शुरुआत से ही गेंदबाज पर आक्रमक प्रहार करते थे. सूरज ने अखोड़ी के कई मैचों की बल्लेबाजी कभी ओपनर के रूप में तो कभी 4 और 5 नं पर खेल कर टीम के लिए रनों का मजबूत आधार बनाते थे.
दीपक भारती का कैच पकड़कर भेजा था पवैलियन
सन 2001 में अखोड़ी टीम 2 भागों में बट गई थी, जिसमें से एक FCC बनी थी, जिसके कैप्टेन सरोप मेहरा थे और इस टीम में बाहर के गांव के खिलाड़ी और अखोड़ी के भी बड़े चेहरे श्री कैलाश डंगवाल जी, श्री गिरीश बडोनी जी थे तो दूसरी परंपरागत अखोड़ी की ए टीम बनी थी, जिसमें अखोड़ी गांव के बेहतरीन खिलाड़ी सूरज नेगी ने टीम का नेतृत्व कप्तान के रूप में किया. यह वही साल था जब 2001 में सूरज की टीम ने चौंरा की टीम के साथ फाइनल मैच में धमाकेदार जीत अर्जित की और विजेता बनी. जबकि चौंरा की टीम में दिल्ली से खिलाड़ी आए थे. इसी टीम में दीपक भारती एक बेहतर बल्लेबाज था, जिसको FCC की टीम दो दिन तक आउट नहीं कर पाई थी, दीपक ने दोनों दिन 50/50 का स्कोर बनाया था. पहले दिन इस सेमीफाइनल के मैच में बारिश होने के कारण मैच दोबारा करवाया गया था. इस रोमांचक मुकाबले में फिर अगले दिन भी FCC की टीम पर दीपक भारी पड़ा. लेकिन ऐसे समय में अगले दिन फाइनल मैच में सूरज की अगुवाई वाली टीम ने दीपक को पहली ही गेंद पर वापस पवैलियन रवाना कर दिया. श्री अनंत बडोनी की पहली गेंद पर दीपक ने गगन चुम्बी शॉट खेलने की गलती कर दी और अकाश में की ऊंचाई पर गई गेंद को बड़े ही आत्मविश्वास के साथ सूरज नेगी ने कैच लपक लिया. दीपक को आउट कर तब सभी साथी खिलाड़ियों ने सूरज नेगी को कंधे पर बैठा दिया था. सूरज के हाथों से कैच कभी नहीं छूटते नहीं थे.
5 शतकीय पारी और करीब 20 अर्धशतकीय पारी खेलने का भी रिकार्ड
सूरज ने मैदान पर 5 शतकीय पारी और करीब 20 अर्धशतकीय पारी खेलकर अखोड़ी का नाम क्रिकेट के सुनहरे पन्नों पर अंकित करा दिया. खेल के मैदान में आलराउंडर बहुमुखी प्रतिभा के धनि सूरज अपने बल्ले से पुल कट, ड्राइव, ग्लांस और लोफ्टेड शॉट खेलने में महारथ हासिल कर चुके थे. क्षेत्ररक्षण में सूरज हमेशा सिली पॉइंट, स्लिप, शार्टकॉरडोंस, डीप कवर पॉइंट, बाउंडरी तथा विकेट पर ध्यान देने के माहिर थे. विकेट के बीच में तेजी से रन बनाने में सूरज का कोई मुकाबला नहीं था.
200 से ज्यादा रन की साझेदारी का बनाया रिकार्ड
सूरज नेगी ने एक बार श्री सरोपसिंह मेहरा जी के साथ ओपनिंग करते हुए 200 से भी ज्यादा रन की साझेदारी का रिर्काड भी कायम किया था. सूरज अपनी बल्लेबाजी में लंबे छक्के लगाने के लिये भी जाने जाते थे. हर साल अखोड़ी के मैदान में टूर्नामेंट का आयोजन होता था लगातार 3 साल तक अखोड़ी ही विजेता रही थी, जिसमें सूरज की बेहतरीन बल्लेबाजी और गेंदबाजी के प्रदर्शन से अपनी टीम को विजेता बनाया था. अपने क्रिकेट करियर में सूरज अनगिनत बार मैनऑफ़ द मैच, बेस्ट मैन ऑफ़ द टूर्नामेंट, बेस्ट कैच ऑफ़ टूर्नामेंट और मैन ऑफ़ टूर्नामेंट के अवार्ड से नबाजे जाते थे. अखोड़ी A टीम के खिलाड़ियों के बेहतरीन प्रदर्शन से टिहरी जिले में सभी टीमों में सूरज की A टीम शीर्ष स्थान पर मानी जाती थी. फिर इसी टीम ने हर जगह टूर्नामेंट खेला था, जिसमे की धमातोली, ख्वाड सौड़, विनयखाल, खानसौड़, दोनी, भिलंग, नैलचामी, नागेश्वरस सौड़, बासर, डांग, पाख, सिलोस, घुमेटीधार, घनसाली, नई टिहरी, पुरानी टिहरी, चम्बा आदि मैदानों पर सूरज ने अपनी टीम का परचम लहराया.
2013 में खेला आखिरी क्रिकेट मैच
सूरज ना केवल एक बेहतरीन खिलाड़ी बल्कि एक बेहतर इन्सान भी थे, जो कभी मैच की जीत का श्रेय खुद को नहीं मानते थे, बल्कि टीम को देते थे. सूरज नेगी ने आखिरी क्रिकेट 2013 में डांग टूर्नामेंट खेल था. उस दिन सूरज ने हरीश बडोनी के साथ ओपनर बेटिंग की.
अखोड़ी की इस बहुमुखी प्रतिभा ने 1999 के टूर्नामेंट में ग्राम मुण्डेती के खिलाफ 101 रन की शतकीय पारी अखोड़ी के खेल प्रांगण में खेली जो आज भी लोगों के मन में ताजी है. अंपायरिंग, कमेंट्री के सभी गुणों में माहिर सूरज को लोग आज भी नम आंखों से याद करते हैं.
सूरज 2011 में गांव से दयालपुर दिल्ली में रहने आ गए थे, फिर यहां रोजी रोटी के लिए ललित होटल में ट्रांसपोर्ट विभाग में कार्यरत थे. अपने परिवार के साथ दिल्ली में रह रहे थे. सब ठीक चल रहा था किंतु 02 जनवरी 2017 को यह सितारा हमेशा के लिए दुनिया से अलविदा हो गया. अपने इसी सितारे की याद में यहां के युवा उनके पसंदीदा खेल क्रिकेट टूर्नामेंट करा कर हर साल सूरज की यादें समेटते हैं.
-लेखक राकेश मेहरा
– शिवसिंह रावत