देहरादून. उतराखण्डी भाषा प्रसार समिति द्वारा मुंबई राजभवन मलबार हिल में आयोजित उतराखण्डी भाषा सम्मेलन महामहिम राज्यपाल श्री भगत सिंह कोश्यारी जी के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ था, जिसमें उतराखण्ड की चौदह बोलियों (गढ़वाली, कुमाऊनी, जौनसारी, बंगाणी, जाड़, जौहारी, जौनपुरी, मार्च्छा, थारू, बोक्साड़ी, राजी, रंल्वू, रवांल्टी, कौरवी) की एक प्रतिनिधि भाषा हेतु उत्तराखंडी भाषा परिषद की स्थापना करने हेतु सम्मेलन में उपस्थित उतराखण्डी जनमानस ने एक प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित किया.
इस प्रस्ताव को उत्तराखंड के माननीय मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी को हस्तोगत करने देहरादून में एक प्रतिनिधि मंडल ने मुलाकात की. डॉ. बिहारीलाल जलन्धरी की अगुवाई में प्रतिनिधि मंडल के सदस्य श्री गणेश पाठक, श्री प्रताप सिंह शाही और डॉ. पृथ्वी सिंह केदारखंडी ने मुलाकात की और माननीय मुख्यमंत्री को प्रस्ताव दिया. इस अवसर पर डॉ. बिहारीलाल जलन्धरी ने कहा कि जिस तरह बाईस भाषाओं के शब्दों को संकलित और समेकीकृत कर हिंदी खड़ी बोली की स्थापना हुई थी ठीक उसी तरह उतराखण्ड की सभी चौदह बोलियों के शब्दों को संकलित और समेकीकृत कर उतराखण्ड के लिए एक प्रतिनिधि भाषा तैयार की जानी है जो असम्भव नहीं है.
डॉ. जलन्धरी ने इस तरह गढ़वाली कुमाऊनी के शब्दों से निर्मित पाठ्यक्रम “मौल्यार” का प्रारूप माननीय मुख्यमंत्री को भेंट किया और इस पर काम करने की मंशा जाहिर की. इस अवसर पर साहित्यकार और वरिष्ठ पत्रकार श्री गणेश पाठक ने कहा कि उत्तराखंड की प्रतिनिधि भाषा पर काम करने के लिए सरकार उतराखण्डी भाषा परिषद या उत्तराखंडी भाषा आयोग गठित करे, जिसके माध्यम से उत्तराखण्ड की तमाम बोलियों के शब्दों को संकलित और समेकीकृत कर उतराखण्ड के लिए एक प्रतिनिधि भाषा तैयार की जा सके.
श्री प्रताप सिंह शाही और डॉ पृथ्वी सिंह केदारखंडी ने उत्तराखण्ड की प्रतिनिधि भाषा पर काम करने की इच्छा व्यक्त की. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड राज्य स्थापना को आज बाईस वर्ष हो चुके हैं परंतु हम आजतक गढ़वाली कुमाऊनी में ही उलझे हैं. इसी कारण से उत्तराखण्ड में क्षेत्रीय भाषाओं पर काम करने अकादमी की स्थापना नहीं हो पाई.
मुख्यमंत्री श्री पुष्कर धामी ने प्रतिनिधि भाषा का प्रस्ताव स्वीकार करते हुए कहा कि अब परिस्थितियां बदल रही हैं हम इस विषय पर अवश्य विचार करेंगे. उन्होंने कहा कि किसी भी प्रदेश के लिए एक प्रतिनिधि भाषा उस प्रदेश की प्रादेशिक भाषा के रूप में स्थापित होती है. जो रोजगार का साधन भी बनती है. इस अवसर पर प्रतिनिधि मंडल का मुख्यमंत्री ने स्वागत किया और इस विषय पर काम करने का दिलासा दिया.