मुंबई. सुप्रसिद्ध रंगकर्मी और फिल्म निर्माता श्री राकेश गौड़ निर्मित और श्री अनुज जोशी निर्देशित गढ़वाली फिल्म ‘मेरु गौं’ देश भर में सफलता के परचम लहराने के बाद कल शुक्रवार, 17 मार्च 2023 को मुंबई के उपनगर ठाणे (महाराष्ट्र) के विवियाना मॉल में दोपहर 2. 30 प्रदर्शित होने जा रही है. इस फ़िल्म के टिकट माय शो पे पर भी उपलब्ध हैं।
हिंदी के लोकप्रिय टीवी सीरियल ‘कसौटी जिंदगी की’ के लगभग 50 एपेसोड का निर्देशन करने वाले निर्देशक अनुज जोशी जी द्वारा निर्देशित ‘मेरु गौं’ फिल्म को देशभर में उत्तराखंड के दर्शकों का जबरदस्त प्रतिसाद मिला है, वहीं उत्तराखंड से जुड़े कई मसलों पर भी फ़िल्म ने लोगों का ध्यान आकृष्ट करने का सार्थक प्रयास किया है.
पढ़ें इस फिल्म पर वरिष्ठ पत्रकार श्री एल. मोहन लखेड़ा जी का समीक्षात्मक लेख-
‘मेरू गौं’ आज भी अपने वजूद के लिये संघर्ष कर रहा, राज्य बना सरकारें सत्तासीन हुई पर ‘मेरू गौं ‘ गमगीन पीड़ा में धंसता चला गया, आखिर क्यों…? प्रश्न आज भी चोट कर रहा है नीति नियंताओं पर..! क्या इन 20 वर्षों में पहाड़ी की पीड़ा कम हुई, बस इसी आयने को दिखाने का एक सार्थक प्रयास है ‘मेरू गौं’
आखिर ‘मेरू गौं’ क्यों..?
2 दिसंबर 2022 से दून के सिल्वर सिटी में चल रही ‘गंगोत्री फिल्मस’ के बैनर पर सुप्रसिद्ध रंगकर्मी और फिल्म निर्माता राकेश गौड़ की नई फिल्म ‘मेरु गौं’ ने उत्तराखण्ड के समसामयिक सवालों को उठाने की दिशा में महत्वपूर्ण काम किया है, लगातार गढ़वाली दर्शकों में अपनी पकड़ बना रही यह फिल्म ऐसे समय पर रिलीज हुई जब देश में आजादी के 75 साल पूरे होने पर ‘अमृत महोत्सव’ मनाया जा रहा है, उत्तराखंड राज्य को बने भी दो दशक से अधिक हो गये हैं, क्या इन दोनों कालखंडों का महत्व और इस फिल्म का संदर्भ यह है कि आजादी के आंदोलन में उत्तराखंड के क्षेत्रीय सवाल राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े लोगों ने जल, जंगल और जमीन पर अंग्रेज़ी जनविरोधी कानूनों से मुक्ति आजादी के साथ देखी, उन्हें लगता था कि देश आजाद होगा तो वह अपनी तरह की नीतियां बनाकर खुशहाल हो सकते हैं. लेकिन आजादी के कई दशकों बाद भी उनकी आंकाक्षाएं मूर्तरूप नहीं ले पाई. तब पर्वतीय क्षेत्र के आठ जिलों में रहने वाले लोगों को लगा कि उत्तर प्रदेश में रहकर उनके साथ भेदभाव हो रहा है. उन्हें लगा कि जब अपना पृथक पर्वतीय प्रदेश होगा तों हम स्थानीय संसाधनों को सही उपयोग कर नीतियां बनायेंगे और हमारे दिन बहुरेंगे, पर सवाल आज भी खड़ा है कि क्या पहाड़ के सही नियोजन कर गांवों की तरक्की कर पाये.
चार दशकों के आंदोलन और 42 शहादतों के बाद राज्य मिल गया. अब दो दशक से अधिक का समय बीत गया. समस्यायें वहीं खड़ी हैं, जहां से राज्य की मांग शुरू हुई थी. उत्तराखंड के लोगों की इन्हीं आकांक्षाओं और टूटते सपनों को बहुत तरीके से ‘मेरु गौं’ में रखा गया है. कहानी, विषयवस्तु, गीत-संगीत, अभिनय, फिल्मांकन, तकनीक की दृष्टि से यह फिल्म एक उम्मीद जगाती है कि उन विषयों पर अच्छी रचनात्मक फिल्में बनाई जा सकती हैं जिन्हें ‘मार्केट’ के डर से लोग हाथ लगाने से हिचकिचाते हैं या इस मुहावरे को तोड़ने की कोशिश नहीं करते, जिसमें कहा जाता है ‘लोग ऐसा ही देखना चाहते हैं. निर्माता राकेश गौड़ और निर्देशक अनुज जोशी ऐसा कर पायें हैं, जिसके लिये वे बधाई के पात्र हैं.
उल्लेखनीय है कि रोकश गौड़ ने कई चर्चित फिल्मों का निर्माण किया है. गौड़ जाने-माने रंगकर्मी हैं. जमीन से जुड़े रहने के कारण बहुत संवेदनशील भी. उनके साथ निर्देशक अनुज जोशी फिल्म के तमाम प्रारूपों की गहरी समझ रखते हैं. उन्होंने कई हिन्दी फिल्मों का सह-निर्देशन किया है. चर्चित टीवी सीरियल ‘कसौटी जिंदगी की’ के लगभग पचास एपेसोड का निर्देशन किया है. उन्होंने पहाड़ के विषयों का गहनता से अध्ययन किया है. उनकी विषय, स्क्रिप्ट, कैमरे, एडिटिंग आदि पर गहरी पकड़ है. इससे पहले वे कई गढ़वाली फिल्मों का निर्माण कर चुके हैं. इनमें उत्तराखंड राज्य आंदोलन पर बनी चर्चित फिल्म ‘तेरी सौं’ है. ‘मेरु गौं’ की कहानी, स्क्रिप्ट और संवाद भी अनुज जोशी ने ही लिखे हैं.
गढवाली फिल्म ‘मेरु गौं’ इन दोनों की समझ और पहाड़ के विषयों को आमजन तक पहुंचाने की मंशा का प्रतिफल है. ‘मेरु गौं’ में उत्तराखंड राज्य बनने के बाद लोगों की आकांक्षाओं पर हुए तुषारापात, नीति-नियंताओं की दृष्टि के अभाव में उपजी निराशा, इनके कारणों और मौजूदा सवालों को बहुत तरीके से संबोधित किया गया है। राज्य बनने के बाद पलायन, रोजगार, परिसीमन, राजधानी, स्थानीय संसाधनों पर अधिकार और विकास की नई परिभाषा से लुटते पहाड़ पर अलग-अलग तरीके से बातचीत की गई है. सबसे अच्छी बात यह है कि इन सब मुद्दों पर भावनात्मक तरीके से नहीं, बल्कि नीतिगत पहलुओं से समझने की कोशिश की है.
पहाड़ की पीड़ा :
एक गांव की पीड़ा और उसके इर्द-गिर्द ही घूमती इस कहानी में उन सभी पात्रों को शामिल किया किया गया है जो एक ग्रामीण, शिक्षक, प्रवासी, स्थानीय स्तर पर अलग-अलग पार्टियों का प्रतिनिधित्व या समर्थन करने वाले हैं। स्वभाविक रूप से उनके विचार भी अलग हैं, फिल्म में उन जिम्मेदार तत्वों को भी इंगित करने की कोशिश है जो किसी न किसी बहाने इन मुद्दों को हाशिए में धकेलते रहे हैं. यह कम साहस का काम नहीं है कि जहां फिल्म निर्माता ऐसी मसालेदार स्टोरी ढूंढने में लगे रहते हैं, जिनसे उनकी फिल्म चल निकले. वहीं परिसीमन जैसे महत्वपूर्ण एवं फिल्म की दृष्टि से नीरस विषय पर जोखिम उठाना प्रशंसनीय है. यह मुद्दा इसलिये भी महत्वपूर्ण है क्योंकि 2026 के बाद होने वाले परिसीमन से उत्तराखंड का राजनीतिक भूगोल पूरी तरह बदलने वाला है. अच्छी कहानी, प्रभावी संवाद, भावपूर्ण अभिनय, आकर्षक फिल्मांकन, ठोस तकनीक, कुशल निर्देशन, अर्थपूर्ण गीत और कर्णप्रिय संगीत लोगों को बांधने में सफल रहा.
उत्तराखंड के सभी जान-पहचाने कलाकारों से सुसज्जित पूरी फिल्म लोगों को पसंद आ रही. बधाई के पात्र हैं अनुज जोशी, राकेश गौड़, मदन डुकलान, गोकुल पंवार, गंभीर ज्याड़ा, सुमन गौड़, अभिषेक मैंदोला और फिल्म में अपना साकार योगदान देने वाले सभी कलाकार.
इसके साथ एक अपील भी, ‘मेरू गौं’ गढ़वाली फिल्म अवश्य देंखे और विचार करें आखिर क्यों…? जरूरत महसूस हुई फिल्म बनाने की.