पिथौरागढ़. कल गैरसैंण सत्र में भाजपा सरकार ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर उत्तराखण्ड की जनभावनाओं के साथ एक बार फिर से खिलवाड़ किया है. ऐसा खिलवाड़ भाजपा हमेशा से ही दिल्ली और नागपुर के इशारों पर करती रही है. आन्दोलनकाल से ही उत्तराखण्ड राज्य की प्रस्तावित राजधानी गैरसैंण ही रही, जिस पर रमाशंकर कौशिक समिति, विनोद बड़थ्वाल समिति और गवर्नर मोती लाल बोरा द्वारा गठित समितियों ने मुहर भी लगाई और कौशिक समिति की रिपोर्ट को तत्कालीन उ.प्र. सरकार ने सर्वसम्मति से पारित कर भारत सरकार को भी भेजा था, लेकिन तत्कालीन उ.प्र. भाजपा सरकार ने पुनर्गठन विधेयक, 2000 में राजधानी का क्लाज ही हटा दिया.
मुद्दे को भटकाने के लिये बनाई ग्रीष्मकालीन राजधानी
उत्तराखण्ड राज्य के लिये एक लम्बा आन्दोलन यहां की जनता ने किया, आज प्रदेश बनने के 20 साल बाद भी उत्तराखण्ड राज्य आत्मनिर्भर नहीं हो पाया और आज यह स्थिति है कि आज राज्य 50 हजार करोड़ के कर्जे में है. यह भी उत्तराखण्ड में ही हुआ कि राजधानी चयन के लिये एक आयोग बनाया गया और उसकी रिपोर्ट विधानसभा में भी पेश की गई, लेकिन उस पर कोई चर्चा विधान सभा में आज तक नहीं हुई और राजधानी के मुद्दे को भटकाने के लिये और उसे लटकाने के लिये ग्रीष्मकालीन का झुनझुना हमें पकड़ा दिया गया. जिस राज्य में कर्मचारियों को वेतन देने के लिये सरकार मार्केट से लोन पर लोन उठा रही हो, ऐसे में ग्रीष्मकालीन या अस्थाई का क्या औचित्य है, यह समझ से परे है.
आन्दोलनकारियों और शहीदों की भावनाओं का अपमान
पहले तो जो देहरादून में अस्थाई राजधानी है वही अवैधानिक है, न तो पुनर्गठन विधेयक में इसके लिये कुछ व्यवस्था है, न ही कोई डाक्यूमेंट हैं, जिसमें यह तय हुआ हो कि देहरादून में अस्थाई राजधानी होगी, राज्य गठन के 20 साल बाद भी हम एक अदद स्थाई राजधानी तय नहीं कर पाये, तो हम क्या कर रहे होंगे, यह सोचा और समझा जा सकता है. भाजपा ही इस सभी के लिये मुख्य दोषी है और इसमें कांग्रेस ने भी लगातार उन्हें सहयोग दिया. यह दोनों दल बारी-बारी राज कर रही हैं और उत्तराखण्ड को लगातार माफियाओं की ऐशगाह भी बना रहे हैं.
गैरसैंण हमें सिर्फ स्थाई और पूर्णकालिक राजधानी ही मन्जूर है, इससे कम हमें कोई मन्जूर ही नहीं है. यदि भाजपा की मंशा उत्तराखण्ड के विकास और उसके विकेन्द्रीकरण की होती तो वह गैरसैंण को स्थाई राजधानी घोषित करती, कुल मिलाकर यह उत्तराखण्ड के लिये तोहफा नहीं तमाचा है तथा तमाम आन्दोलनकारियों और शहीदों की भावनाओं का अपमान है. उत्तराखण्ड क्रान्ति दल अब पुरजोर तरीके से उत्तराखण्ड की स्थाई राजधानी गैरसैंण बनाने के लिये जनता को साथ में लेकर संघर्ष करेगा और जिस प्रकार से हमने राज्य लिया, उसी प्रकार से गैरसैंण को भी प्राप्त करके रहेगा.