गजा. वैश्विक महामारी कोरोना काल के दौरान उत्तराखंउ में कुंद हुई मेले-थौल की रौनक अब कोरोना खत्म होने के बाद फिर से लौट आई है. देवभूमि उत्तराखंड के ग्रामीण अंचलों में अपने आराध्य कुल देवों, वीर सैनानियों व लोक संस्कृति से जुड़े अनेक प्रसंगों पर बैशाख का महीना लगते ही मेले शुरू हो जाते हैं. पिछले कोरोना काल में लगातार दो साल जीवन बचाने की जद्दोजहद में लोक उत्सवों के रंग फीके पड़ गए, जिसका असर कई देव आयोजनों पर भी पड़ा. अब एक बार फिर मेले के रंगों से उत्तराखंड की देवभूमि फिर से रंगीन हो उठी है.
इसी कड़ी टिहरी जनपद के जाखधार, कंडीसौड़, हुलानाखाल के बाद आज गजा के मेले में भारी भीड़ उमड़ी और लोगों ने जमकर खरीददारी की. धार अकरिया, क्वीली, कुजणी पट्टियों के केन्द्र स्थान गजा में इस बार लोग मेले में जमकर जश्न मनाते देखे गए.
यहां 25 अप्रैल 12 गते बैशाख को मनाये जाने वाले इस मेले में पहले दिन से ही बाजार में दुकानदारों ने अपने अपने लिए जगह घेर ली थी तथा गौंसारी गांव के लोग ढोल दमाऊं के साथ घंडियाल मंदिर गजा में पूजा करने आये. यह पुरानी परम्परा आज भी जीवित है. मेले में राजस्व विभाग प्रशासन के राजस्व निरीक्षक, राजस्व उप निरीक्षक तथा होम गार्ड भी शांति व्यवस्था कायम रखने में मदद करते रहे. वहीं नगर पंचायत गजा के कर्मचारी भी स्वच्छता बनाए रखने के लिए सुझाव देते नजर आए.
नगर पंचायत गजा अध्यक्ष श्रीमती मीना खाती और अधिशासी अधिकारी सुशील बहुगुणा ने कहा कि पौराणिक थौल मेले हमारी संस्कृति के प्रतीक हैं. साल भर से लोगों में थौल मेले आने की उमंग रहती है. थौल मेलों में पकवानों के साथ ही कृषि औजार, मोमो, बर्गर, गुलदस्ते, चाट, प्लास्टिक वर्तन, रेडिमेड परिधानों की दुकानें खूब सजी थी. इस अवसर पर अरविंद उनियाल, मान सिंह चौहान, राजेन्द्र खाती, गजेन्द्र सिंह खाती, कुंवर सिंह चौहान ने बताया कि हमें अपने थौल मेलों को बढ़ावा देने के लिए सभी को प्रयास करना चाहिए.