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पुराणी ड्येली गया तुम्हारी तख ताला लग्यांन….जानें राठ के होल्यारों के बारे में

राठ होल्यारों का प्रयास: सांस्कृतिक जड़ों को पुनर्जीवित करने की सार्थक पहल

uk khabar by uk khabar
21st March 2025
in उत्तराखंड, कला/संस्कृति, त्यौहार
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पुराणी ड्येली गया तुम्हारी तख ताला लग्यांन….जानें राठ के होल्यारों के बारे में
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पुराणी ड्येली गया तुम्हारी तख ताला लग्यांन।
हेंसदी खेलदी तिबारी तख सुन पड्यांन छन।
आवा गोला भेंटा हमारा हम भारी खुदियांन।
खट्टी मीठी छवीं पुराणी ऊंतै लगोला।
चला म्यरा मैत्यूं घोर बोडोला।
होलियारों की होली मैत्यूं मा जाली।
हेंसियां खेल्यां बित्यां दिनों याद दिलाली।

अर्थात इस गढ़वाली गीत के गायक सचिन पुसोला कहते हैं, ‘हम आपके पुराने घर के चौखट पर गए तो दरवाजे पर ताला लगा है। जिन घर के बरामदे में आप लोग हंसते और खेलते थे, वह सुनसान पड़ी हुई है। आओ हमारे गले लग जाओ, हम भारी याद करते हैं आपको। वहाँ पहुँच कर अच्छी बुरी बात करेंगे। चलो, मेरे मायके वाले वापस घर का रास्ता देखेंगे। आज हम होल्यारों की होली मायके वालों के पास जाएगी और गांव-घर की हंसने-खेलने की बीते दिनों की याद दिलाएगी.’

राज्य के पौड़ी गढ़वाल का राठ क्षेत्र, अपनी सांस्कृतिक धरोहर और समृद्ध परंपराओं के लिए जाना जाता है। हर वर्ष होली का पर्व यहाँ बिंदास तरीके से मनाया जाता है, लेकिन इस बार की होली ने एक खास मोड़ लिया है। राठ त्रिपट्टी होली के बैनर तले 19 लोगों की एक टीम ने देहरादून में तीज-त्योहार का रंग बिखेरने का कार्य किया। उनके साथ थीं रंग-बिरंगी ड्रेस, हारमोनियम और ढोलक, और युवाओं के सुरीली कंठ, जिससे उन्होंने अपने गीतों की छटा बिखेरी। इन होल्यारों ने तीन दिनों तक देहरादून में राठ क्षेत्र के निवासियों के घर -घर जाकर उनके बीच अपनी होली गीतों की प्रस्तुति दी। उन्हें अपने गांव और संस्कृति के प्रति एक अटूट लगाव था, और वे अपने गीतों में पलायन की समस्या को स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त कर रहे थे। वे गांव में लौटने का संदेश दे रहे थे, यह याद दिलाते हुए कि जो घर उन्होंने छोड़े हैं, वहाँ ताले लगे हुए हैं। इस संदर्भ में, उनके गीतों में एक गहरी भावना विद्यमान थी, जो देहरादून में बसे राठ क्षेत्र के लोगों को अपने गांव की याद दिला रही थी।

इन गानों के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए, और एक अद्भुत प्रतिक्रिया उत्पन्न की। लगभग 50 लाख पहाड़ी लोगों ने इन गीतों को देखा, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि राठ क्षेत्र के लोगों के दिल में अपने घर और गांव के प्रति कितनी लगन है। ये गीत केवल मनोरंजन का स्रोत नहीं थे, बल्कि एक सामाजिक संदेश का माध्यम भी बने। महिलाएं इन गीतों को सुनते हुए भावुक हो जाती थीं, जिससे पता चलता है कि उनका गांव और संस्कृति उनके लिए कितनी महत्वपूर्ण है। इस प्रकार, इस बार की होली ने न केवल रंगों का पर्व मनाया, बल्कि यह भी दर्शाया कि गांवों की अर्थव्यवस्था और संस्कृति में पुनर्निवेश की कितनी आवश्यकता है। राठ क्षेत्र के होल्यारों की यह कोशिश एक मूल्यवान कदम है, जिसके द्वारा वे अपने गांव के लोगों को जोड़ने और उनके दिलों में अपनी जड़ों को पुनर्जीवित करने का कार्य कर रहे हैं। उनकी यह प्रयास हमें याद दिलाता है कि हमें अपने घरों और गांवों से कभी नहीं कटना चाहिए, क्योंकि वही हमारी पहचान और संस्कृति का आधार होते हैं। समाज में ऐसे प्रयासों की सराहना होनी चाहिए, जो लोगों को उनके घरों और सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ने का कार्य करते हैं। यही कारण है कि इस बार की राठ त्रिपट्टी होली ने सभी के दिलों में एक नए उत्साह और सकारात्मक सोच का संचार किया है।

वरिष्ठ पत्रकार संतोष चमोली ने अपने अखबार हिंदुस्तान में दिया स्थान

श्री संतोष चमोली, जो कि देहरादून के एक प्रमुख पत्रकार हैं, ने अपने अखबार हिंदुस्तान में इन होल्यारों की जानकारी साझा की। उन्होंने बताया कि राठ की इस टीम ने तीन दिन तक उन लोगों के घरों में जाकर गीत गाए, जो कि राठ के मूल निवासी हैं। यह उल्लेखनीय है कि उन्होंने राजनीति और शक्ति के केंद्रों से दूर रहकर, आम जनता के बीच गीतों के जरिए संदेश देने का कार्य किया। उनका उद्देश्य केवल गीत गाना नहीं था, बल्कि अपने लोगों को उनकी मातृभूमि, गांव, खेत-खलिहान, और तिबार की याद दिलाना था। पलायन की समस्या उत्तराखंड की एक गंभीर चुनौती है। युवा पीढ़ी काम की तलाश में बड़े शहरों की ओर बढ़ जाती है, जिससे गांवों की संस्कृति और परंपराएं प्रभावित होती हैं। बेहतर स्वास्थ्य, बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए छोटी मोटी नौकरी करने वाले लोग भी बड़ी संख्या में पहाड़ को अलविदा कह चुके हैं। पिछले दस साल से पर्वतीय क्षेत्रों में गांव के गांव खाली हुए हैं। ऐसे समय में, राठ के होल्यारों ने अपने गीतों के माध्यम से इस समस्या की गंभीरता को उजागर किया। उनके गीतों में गाँव की मिट्टी की सुगंध और खेतों की हरियाली का बोध था। यह सुनकर माताओं-बहनों की आंखों में आंसू आ गए, क्योंकि उन शब्दों में उनका अपना गाँव और उनकी यादें छिपी थीं। होलियारों का यह अनोखा प्रयास न केवल सांस्कृतिक विरासत के प्रति अपार प्रेम दर्शाता है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाता है कि हमें अपने घर और जड़ों के प्रति सदैव समर्पित रहना चाहिए। उनकी कला ने हमें यह एहसास कराया कि पलायन भले ही आवश्यक हो, लेकिन अपनी जड़ों से जुड़े रहना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

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राठ के होल्यारों की टीम पैठाणी से मुख्यमंत्री के बुलावे पर वापस देहरादून आई

राठ के ये होल्यार, जो सुबह दून से लौटे थे, ने पौड़ी की सड़कों पर अपने अनोखे अंदाज में होली गायन किया। उनकी आवाज़ों में जो उल्लास और उत्साह था, उसने राहगीरों को भी अपनी ओर खींच लिया। होली का यह गायन न केवल एक परंपरा के रूप में था, बल्कि यह उनके गांव की यादों और वहां के जीवन की कठिनाइयों को भी बयां कर रहा था। जैसे ही ये होल्यार पाबौ होते हुए पैठाणी पहुंचे, उन्होंने ग्राम्य जीवन की समस्या को एक नए अंदाज में प्रस्तुत किया। इसी दौरान, डीएम पौड़ी, डॉ. आशीष चौहान ने फोन करके उन्हें मुख्यमंत्री के संदेश से अवगत कराया, जिसमें उन्हें सीएम आवास पर होली मिलन कार्यक्रम में निमंत्रित किया गया था। इस जानकारियों ने होल्यारों के लिए एक अनपेक्षित अवसर उत्पन्न किया। टीम के सदस्य, जो अपने गांव जाने का इरादा रखे हुए थे, तुरंत पौड़ी की ओर बढ़े। रात के 9 बजे तक वे पौड़ी पहुंचे और वहां से डीएम ने उन्हें तीन गाड़ियों के काफिले के साथ दून पहुँचाया। उनकी गाड़ी में हूटर भी थे, जिसे होल्यार पहली बार बड़ी इज्ज़त समझ रहे थे। अगले दिन, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के आवास पर होली गीत गाते समय, इन होल्यारों ने न केवल होली का उत्सव मनाया, बल्कि उन्होंने अपने पलायन गीत गा कर पहाड़ की वास्तविक भी बताई। मुख्यमंत्री ने इन होल्यारों को सम्मानित किया।

होल्यारों की टीम के सदस्य

पंकज रावत उर्फ पंखु पहाड़ी (बड़ेथ), रेवाधर प्रसाद (बुरांसी), धीरज नेगी (कनाकोट), प्रेम रावत (कुटकंडाई), संजय मुंडेपी (कुंडिल), लल्ली भाई (ग्वालखड़ा), गौरव नौटियाल, प्रियांशु नौटियाल, सचिन पुसोला, अनिल पंत, संतोष नौटियाल, योगेश पुसोला (सभी ग्राम दौला), महावीर प्रसाद (बनानी), प्रियांशु नेगी (खंडगांव), अरविंद नेगी (स्योली तल्ली), दीपक नेगी (खंडगांव), सुजल रावत (थापला) और प्रदीप बर्खाल (बनास)। टीम लीडर पंकज रावत उर्फ पंखु पहाड़ी व्यवसाय के रूप में अपनी जीप चलाते हैं। वह लगभग हर दिन राठ के पैठानी से देहरादून जीप में सवारियों को लाते-ले जाते हैं। इसी लिए देहरादून में कहाँ-कहाँ राठी निवासरत हैं, वहीं वह होल्यार बनकर गए। उत्तराखण्ड में बहुत जगह होल्यारों की टीम ने होली मनाई, लेकिन राठ त्रिपट्टी की इस टीम की सर्वोच्च प्रशंसा हो रही है।

-शीशपाल गुसाईं

 

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