देहरादून। हिमालयी लोक संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए काम कर रही संस्था डांडी कांठी क्लब की ओर से 17 सितम्बर को विभिन्न क्षेत्रों से अलग-अलग विधाओं की श्रेष्ठ विभूतियों को राज्य वाद्य यंत्र सम्मान-2025 और अपने पद पर रहकर राज्य के विकास में विशिष्ट योगदान देने वाले 6 अधिकारियों को डांडी कांठी रत्न-2025 से सम्मानित किया गया।
संस्कृति विभाग प्रेक्षागृह निकट, दूरदर्शन केन्द्र हरिद्वार बाईपास रोड में आयोजित हुए इस कार्यक्रम में जनपद टिहरी के श्री धनी दास जी को राज्य वाद्य यंत्र सम्मान-2025 से नवाजा गया। जागर, पारंपरिक पवाड़े, ढोंर थाली, हुड़का, धोंसी और ढोल विधा के जानकार श्री धनी दास जी सुपुत्र श्री गरीबा दास, ग्राम हडियाणा मल्ला, हिंदाव, जनपद टिहरी गढ़वाल के रहने वाले हैं। जागर, पवड़ा और उत्तराखंड के पारंपरिक डोल विधा धनी दास जी को अपने पुरखों से पारिवारिक विरासत के रूप में मिली है। वे आज भी देवी जागरण, ढोल पर जागर, मडांण, ढौंर थाली और धौंसी ( हुड़का) पर वीर भड़ों की गाथा के 9 दिवसीय जागरण पूजा संपन्न कराते हैं।
धनी दास जी को ढोल और धौंसी दोनों वाद्य यंत्रों पर रूपसा राजुला मालूशाही , राजा देवी चंद, सांवली धोरोलिया, सूरमा रोतेंली, लीलादेई, जोतमाला, बर्मी कोल जैसी ऐतिहासिक वंशावली और गोरील, नरसिंह, नागराजा, मां भगवती देतियं संहार के जागरण संपन्न कराने की महारथ हासिल है। साथ ही धनीदास जी इन विधाओं को विलुप्त होने से बचाने का भी काम कर रहे हैं। उन्होंने अपनी इस लोक विरासत में अपने बेटे को भी पारंगत किया है। यही कारण है कि उनकी यह सांस्कृतिक विरासत उनके सुपुत्र लोक गायक शांति श्रीवाण आगे बढ़ा रहे हैं।
लोक गायक शांति श्रीवाण जी ने जिया राणी गीत से गायन के क्षेत्र में कदम रखा और उसके बाद पारंपरिक राधाखंडी लोक गीत, ध्यानु माला और पारंपरिक गीत घट कु घटवाड़ी से लोगों के दिलों में जगह बनाई है। गायक शांति श्रीवाण गीतों की भेड़चाल से हट कर अपने मधुर कंठ से पुरखों से मिली लोक गाथाओं की विरासत को सहेजने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। वे राज्य की विलुप्त होती लोक गाथाओं को गीतों के जरिए पिरौने के साथ ही राज्य के सामाजिक आर्थिक विकास के मसलों पर भी संवेदनशील हैं। शांति श्रीवाण की आवाज में जल्द लेखक जयेंद्र दत्त अंथवाल द्वारा लिखे गए उत्तराखंड जवान ह्वेगी गीत रिलीज होने वाला है। इसमें पलायन, स्वास्थ्य, सड़क आदि ज्वलंत समस्याओं को आवाज दी गई है।
इन विभूतियों ने बढ़ाया राज्य वाद्य यंत्रों का सम्मान
राज्य वाद्य यंत्र सम्मान पाने वाली अन्य विभूतियों में टिहरी जनपद के थत्यूड़ निवासी, रामलीला मंचन के संगीतकार श्री शांति प्रसाद जी, आठ साल की उम्र से पूजा पाठ व 500 से ज्यादा देव जागर के पारंपरिक कार्य करने वाले पौड़ी निवासी श्री अजीत कुमार, विगत 18 साल से उत्तराखंड संगीत व लोक गीतों का संरक्षण में योगदान दे रहे नरेंद्र नगर के शिवपुरी निवासी श्री सुरेंद्र सिंह, सुरकंडा सिद्धपीठ के प्रसिद्ध ढोल वादक श्री रुकम दास, डोल की थाप पर 33 करोड़ देवी देवताओं का आह्वान करने वाले ओर नरों पर नारायण अवतरित करने वाले रुद्रप्रयाग के श्री गिरीश कुमार, उत्तराखंड की प्रसिद्ध लोक गायिका रेश्मा शाह, संगीत जगत में काम कर रहे पौड़ी निवासी संतोष खेतवाल, पारम्परिक भोज पकाने वाले सरोला भगवती प्रसाद सेमवाल, टिहरी निवासी गीतकार मालचंद सिंह और डोर थाली के जागर विधा के जानकार गोवर्धन नाथ को सम्मानित किया गया। इनके अलावा राज्य के विकास में योगदान देने वाले 6 अधिकारियों को डांडी कांठी रत्न 2025 से सम्मानित किया गया।
उत्तराखंड की अपनी अनूठी लोक कला और संस्कृति के लिए जाना जाता है। राज्य की कुछ लोक विधाओं ने देश और दुनिया में अपनी खास पहचान भी बना ली है। डांडी कांठी क्लब लगातार लोककला और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को बढ़ावा देने में जुटी है। मध्य हिमालयी संस्कृति के सरोकारों के संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए डांडी कांठी क्लब द्वारा जागर, पवाडे, लोक गीतों, लोकनृत्यों , लोक वाद्यों एवं विलुप्त होती विधाओं को संरक्षित करने का संकल्प लिया गया है। विगत वर्षों की भांति इस वर्ष भी पारंगत कलावंतों को सम्मान किया गया।
-विजयभूषण उनियाल, अध्यक्ष, डांडी कांठी क्लब