-गोदाम्बरी आर्य
भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में आज का दिन ऐतिहासिक है। आज देश की आधी आबादी को लोकतंत्र के मंदिर संसद और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण का मार्ग प्रशस्त हो गया है। आज प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के साहसी नेतृत्व में देश की नई संसद में माहिला शक्ति को 33 प्रतिशत आरक्षण देने की नई इबारत लिखी गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई संसद में संबोधित करते हुए कहा कि नई संसद पहली कार्रवाई में देश की नारी शक्ति के लिए नए प्रवेश द्वार खोल रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि हमारी सरकार नारी शक्ति वंदन अधिनियम को प्रस्तुत करने जा रही है। हम नारी शक्ति को संसद और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए संकल्पबद्ध हैं। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी दलों से सर्वसम्मति से बिल पारित करने की प्रार्थना की। यह बिल कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने संसद में प्रस्तुत कर दिया। बिल नई तकनीक से स्क्रीन पर अपलोड कर दिया गया।
इससे पहले, हर चुनाव में सभी राजनीतिक दलों ने महिला शक्ति को सिर्फ वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया और जब चुनाव में टिकट देने की बात आई, तो महिलाओं को नेतृत्व देने के मामले में कभी बड़ा दिल नहीं दिखाया। जिससे देश की आधी आबादी को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल सका।
यहां हम बात अब अगर अपने राज्य उत्तराखंड की करें, तो उत्तराखंड में भी महिलाओं को नेतृत्व देने में सभी दलों पर पुरुषवादी मानसिकता भारी रही। उत्तराखंड निर्माण की अग्रदूत रहीं मातृशक्ति राजनीतिक दलों की उपेक्षा के कारण राज्य बनने के बाद हासिए पर चली गईं। अब नया कानून संसद में पारित हो जाता है तो उत्तराखंड की विधानसभा में करीब 23 महिला विधायक राज्य के विकास के लिए नीति बनाने में अपनी भागीदारी निभा सकेंगी। राज्य निर्माण के बाद उत्तराखंड में महिला प्रतिनिधित्व के मामले में दहाई का अंक भी नहीं छू सका और यह आंकड़ा अधिकतम 9 ही रहा।
साल 2000 में जब उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड राज्य बनाया गया था, तब उत्तराखंड की अंतरिम सरकार में 22 विधायक पुरुष थे, जबकि सिर्फ श्रीमती इंदिरा ह्र्रदयेश और श्रीमती निरुपमा गौड ने विधानपरिषद सदस्य के रूप में उत्तराखंड विधानसभा में कदम रखे थे।
उत्तराखंड विधानसभा के पहले आम विधानसभा चुनाव में चार महिला प्रतिनिधि विधानसभा में चुनकर आई थीं, जिनमें बीरोंखाल से श्रीमती अमृता रावत (कांग्रेस), हलद्वानी से श्रीमती इंदिरा ह्रदयेश (कांग्रेस), यमकेश्वर से श्रीमती विजया बडथ्वाल (भाजपा), केदारनाथ से श्रीमती आशादेवी नौटियाल (भाजपा) ने प्रतिनिधित्व किया।
राजनीतिक दलों की उपेक्षा और नेता बनने की होड़ में उत्तराखंड विधानसभा के दूसरे चुनाव 2007 में महिलाओं का प्रतिनिधित्व और घट गया और सिर्फ 3 महिला विधायक- बीरोंखाल से श्रीमती अमृता रावत, केदारनाथ से श्रीमती आशादेवी नौटियाल और बीना महरा चंपावत से विधानसभा से जीतकर पहुंचीं।
उत्तराखंड विधानसभा के तीसरे चुनाव 2012 में केदारनाथ से शैलारानी रावत, भगवानपुर ममता राकेश, यमकेश्वर से विजया बड़थ्वाल, सोमेश्वर से रेखा आर्य, नैनीताल से सरिता आर्य, हलद्वानी से इंदिरा ह्रदयेश विधानसभा सीट से निर्वाचित होकर विधानसभा पहुंची थीं।
उत्तराखंड विधानसभा के चौथे विधान चुनाव 2017 में महिला प्रतिनिधियों की संख्या फिर घट गई और सिर्फ चार विधायक श्रीमती रेखा आर्य, श्रीमती रितु खंडूरी, श्रीमती ममता राकेश और श्रीमती इंदिरा ह्रदयेश विधानसभा में महिला शक्ति के रूप में पहुंची। उपचुनाव में कैंट विधानसभा सीट से श्रीमती सविता कपूर को भी प्रतिनिधित्व का मौका मिला।
उत्तराखंड विधानसभा के पांचवें विधान चुनाव 2022 में उत्तराखंड के विधानसभा के इतिहास में जरूर यह आंकड़ा बढ़ा और उत्तराखंड के 70 विधानसभा सीटों में से 8 महिला विधायक चुनकर विधानसभा पहुंची। जिनमें शैलारानी रावत केदारनाथ, सविता कपूर देहरादून कैंट, बरखा रानी ज्वालापुर, ममता राकेश ज्वालापुर, रेणु बिस्ट यमकेश्वर, रितु खंडूरी कोटद्वार, सरिता आर्य नैनीताल, रेखा आर्य सोमेश्वर, पार्वती दास के बागेश्वर उपचुनाव जीतने के बाद यह संख्या 9 पहुंच गई, जो उत्तराखंड विधानसभा के इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी संख्या है।
राज्य बनने के बाद इन विधानसभाओं को मिला महिला नेतृत्व
केदारनाथ
यमकेश्वर
बीरोंखाल
नैनीताल
भगवानपुर
ज्वालापुर
सोमेश्वर
देहरादून कैंट
बागेश्वर
कोटद्वार